| Article Title | श्रेष्ठ समाज के निर्माण में यम – नियम की भूमिका | 
| Author(s) | धर्म वीर शर्मा, डॉ भारत वेदालंकार. | 
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| Abstract | योग भारतीय ज्ञान परम्परा की एक ऐसी विधा है जिसे दर्शन के प्रत्येक वर्ग ने स्वीकार किया है। क्योंकि योग केवल सैद्धांतिक ज्ञान प्रदान नहीं करता अपितु व्यवहार में अंगीकार किया जाता है। बड़े-बड़े ऋषि, तपस्वी योग मार्ग का अनुसरण जीवन के परम पुरुषार्थ अर्थात मोक्ष की प्राप्ति के लिए करते हैं। परंतु योग केवल ऋषि-महात्मा आदि तपस्वियों के लिए नहीं है वरन् योग सामान्य जन मानस के लिए भी उतना ही उपयोगी है। योग के द्वारा व्यक्ति का समग्र विकास होता है। योग मानव जीवन के प्रत्येक स्तर को प्रभावित करता है। शारीरिक, मानसिक, आर्थिक, सामाजिक और आध्यात्मिक उन्नति के लिए योग का पालन प्रत्येक व्यक्ति के लिए आवश्यक है। योग समाज को उन्नत बनाने, शिष्ट बनाने तथा श्रेष्ठ बनाने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाता है। योगदर्शन में अष्टांग योग के अंतर्गत प्रतिपादित यम और नियम दो ऐसे आधारभूत साधन हैं जिनके पालन से व्यक्ति की आत्मिक उन्नति होती है तथा सामाजिक समरसता की भवन जागृत होती है। | 
| Area | दर्शनशास्त्र | 
| Issue | Volume 2, Issue 2 (April - June 2025) | 
| Published | 09-06-2025 | 
| How to Cite | Shodh Sangam Patrika, 2(2), 52-57. | 
 
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