हिंदी आलोचना में आचार्य रामचंद्र शुक्ल की भूमिका और योगदान

Shodh Sangam Patrika

Shodh Sangam

Patrika

A National, Peer-reviewed, Quarterly Journal

  ISSN: 3049-0707 (Online)
ISSN: 3049-172X (Print)

Call For Paper - Volume - 2 Issue - 3 (July - September 2025)
Article Title

हिंदी आलोचना में आचार्य रामचंद्र शुक्ल की भूमिका और योगदान

Author(s) अंजलि मिश्रा.
Country
Abstract

हिंदी साहित्य का इतिहास जितना व्यापक और समृद्ध है, उतना ही जटिल और विविधतापूर्ण भी है। इसकी आलोचना परंपरा का विकास विभिन्न युगों और विचारधाराओं के साथ होता रहा है। किंतु यदि हम हिंदी आलोचना के वैज्ञानिक, तर्कसंगत और आधुनिक रूप की बात करें, तो इसका श्रेय निःसंदेह आचार्य रामचंद्र शुक्ल को जाता है। उन्होंने न केवल आलोचना को एक सृजनात्मक विधा के रूप में प्रतिष्ठित किया, बल्कि उसे साहित्यिक विमर्श का एक सशक्त माध्यम भी बनाया। हिंदी आलोचना की जो वैज्ञानिक और वस्तुनिष्ठ परंपरा आज हमें देखने को मिलती है, उसकी नींव शुक्ल जी ने ही रखी थी। बीसवीं शताब्दी के आरंभिक वर्षों में हिंदी साहित्य एक संक्रमण काल से गुजर रहा था। एक ओर भक्ति आंदोलन की विरासत थी, जिसमें भावात्मकता और धार्मिकता प्रमुख थीं; दूसरी ओर नवजागरण की चेतना थी, जो साहित्य को सामाजिक, राजनीतिक और सांस्कृतिक प्रश्नों से जोड़ना चाहती थी। ऐसे समय में आवश्यकता थी एक ऐसे चिंतक की, जो साहित्य को न केवल सौंदर्य के धरातल पर परखे, बल्कि उसे समाज और यथार्थ के संदर्भ में भी मूल्यांकित करे। आचार्य रामचंद्र शुक्ल ने इस आवश्यकता की पूर्ति की और हिंदी आलोचना को युगबोध और समाजबोध से जोड़ा।

Area हिन्दी साहित्य
Published In Volume 1, Issue 4, December 2024
Published On 24-12-2024
Cite This मिश्रा, अंजलि (2024). हिंदी आलोचना में आचार्य रामचंद्र शुक्ल की भूमिका और योगदान. Shodh Sangam Patrika, 1(4), pp. 18-24.

PDFView / Download PDF File