नागार्जुन के काव्य में राजनीतिक व्यंग्य

Shodh Sangam Patrika

Shodh Sangam

Patrika

A National, Peer-reviewed, Quarterly Journal

  ISSN: 3049-0707 (Online)
ISSN: 3049-172X (Print)

Call For Paper - Volume - 2 Issue - 4 (October - December 2025)
Article Title

नागार्जुन के काव्य में राजनीतिक व्यंग्य

Author(s) चंचल साह.
Country
Abstract

आधुनिक साहित्य में शुरुआत से ही अपनी बात कहने के लिए व्यंग्य का सहारा लिया जाता है । जब भी किसी व्यक्ति, किसी विषय, धर्म, राजनीति आदि पर कटाक्ष करना हो, व्यंग्य ही एकमात्र विकल्प होता है । आधुनिक साहित्य के निर्माता भारतेंदु ने अपने तात्कालिक समय की राजनीति, आर्थिक, धार्मिक, सामाजिक विषमताओं पर कटाक्ष करने के लिए व्यंग्य को ही सहारा बनाया । इसी तरह भारतेंदु युग से लेकर छायावादी युग तक के लगभग सभी कवियों ने अपनी रचनाओं में व्यंग्यात्मकता को प्रधानता दी है । हिंदी साहित्य का प्रगतिवादी युग विषमताओं का ही युग रहा है। नागार्जुन इस युग के प्रमुख कवि रहे हैं । उनके रचनाकाल 1935 से लेकर उनके मृत्युपर्यंत तक राजनीति में अनगिनत बदलाव हुए । देश को अंग्रेजों से आजादी तो मिल गई पर आम जनता अभी भी अपने ही देश में, अपने ही देश के कुछ नामचीन लोगों के हाथों की कठपुतली थी । देश की स्वतंत्रता पश्चात् भी उनकी जरुरतें, देश के शासकों से उनकी उम्मीदें जब की तस थी । सरकारें बदल रही थी, पर अब भी आमजन की स्थिति में कोई बदलाव नहीं हो रहा था । केंद्रीय सत्ता अपने मनमानी करने से बाज़ नहीं आ रहे थे । नागार्जुन राजनीति के इस बदलते परिवेश को महसूस कर रहे थे । नागार्जुन ने राजनीति के इस बदलते परिवेश और उससे उत्पन्न होने वाली समस्याओं से निपटने के लिए अपनी रचनाओं में व्यंग्य को एक हथियार के रूप में इस्तेमाल किया । उन्होंने अपने तीखे व्यंग्यात्मक बाणों से किसी को नहीं बख्शा । सामान्य व्यक्ति के साथ नेतागण, भारत के निर्माणकर्ता, सत्ताधारी वर्ग सभी उनके दृष्टि में थे । उन्होंने अपनी कविताओं में इन सारे वर्गों पर व्यंग्य के माध्यम से तंज कसा । वे एक सशक्त व्यंग्यकार थे ।

Area हिन्दी साहित्य
Issue Volume 2, Issue 2 (April - June 2025)
Published 30-06-2025
How to Cite Shodh Sangam Patrika, 2(2), 174-183.

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