| Article Title | राजेन्द्र यादव के उपन्यासों में नारी की भूमिका और स्वतंत्रता की चेतना: एक आलोचनात्मक समीक्षा | 
| Author(s) | सौरभ सिंह. | 
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| Abstract | राजेन्द्र यादव हिंदी साहित्य के एक ऐसे सशक्त रचनाकार हैं, जिन्होंने कथा साहित्य को न केवल नई दृष्टि दी, बल्कि सामाजिक चेतना को भी गहराई से झकझोरा। उनका जन्म 28 अगस्त 1929 को उत्तर प्रदेश के आगरा जनपद में हुआ था। उन्होंने न केवल लेखक के रूप में, बल्कि 'हंस' पत्रिका के संपादक के रूप में भी साहित्यिक जगत में गहरी छाप छोड़ी। राजेन्द्र यादव का लेखन समाज के हाशिए पर खड़े व्यक्ति की पीड़ा, संघर्ष और अस्मिता को स्वर देता है। वे नई कहानी आंदोलन के प्रमुख स्तंभों में गिने जाते हैं और उनके उपन्यासों में व्यक्ति की मानसिक उलझनें, सामाजिक जड़ताओं के विरुद्ध विद्रोह और यथास्थिति को तोड़ने की तीव्र आकांक्षा दिखाई देती है। हिंदी साहित्य में उनका योगदान बहुआयामी है। एक ओर उन्होंने परंपरागत लेखन से हटकर नए विषयों को उठाया, वहीं दूसरी ओर उन्होंने साहित्य में सामाजिक न्याय, लैंगिक समानता और वैचारिक स्वतंत्रता जैसे मुद्दों को गंभीरता से प्रस्तुत किया। उनके उपन्यासों में मध्यवर्गीय जीवन के संघर्ष, पारिवारिक टूटन, युवा पीढ़ी की बेचैनी और विशेष रूप से स्त्री की स्थिति का विश्लेषण मिलता है। उनका लेखन सामाजिक यथार्थ से जुड़ा हुआ है और उसमें स्त्री के आत्मसम्मान और स्वतंत्रता की गूंज स्पष्ट सुनाई देती है। | 
| Area | हिन्दी साहित्य | 
| Issue | Volume 1, Issue 3 (July - September 2024) | 
| Published | 14-08-2024 | 
| How to Cite | Shodh Sangam Patrika, 1(3), 10-15. | 
 
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