Article Title |
हिन्दी दलित साहित्य: एक सामाजिक और सांस्कृतिक अध्ययन |
Author(s) | दीपिका सिंह. |
Country | |
Abstract |
हिन्दी दलित साहित्य वह साहित्यिक प्रवृत्ति है जो समाज के हाशिए पर खड़े दलित वर्गों के जीवन अनुभवों, संघर्षों और उनकी सामाजिक चेतना को अभिव्यक्त करता है। यह साहित्य पारंपरिक साहित्यिक मूल्यों और सौंदर्यानुभूति से भिन्न होकर जीवन के कटु यथार्थ, शोषण, अन्याय और असमानता के विरुद्ध एक सशक्त आवाज़ के रूप में उभरता है। दलित साहित्य केवल एक साहित्यिक आंदोलन नहीं, बल्कि सामाजिक बदलाव की प्रक्रिया का हिस्सा है, जिसमें लेखन एक हथियार बन जाता है। हिन्दी दलित साहित्य का विकास मुख्यतः 20वीं शताब्दी के उत्तरार्ध में हुआ। हालांकि दलित जीवन की छाया लोककथाओं, किंवदंतियों और परंपरागत साहित्य में पहले से मौजूद थी, परन्तु व्यवस्थित और मुखर रूप में इसकी अभिव्यक्ति डॉ. भीमराव अंबेडकर के विचारों और सामाजिक आंदोलन से प्रेरणा लेकर सामने आई। ओमप्रकाश वाल्मीकि की आत्मकथा ‘जूठन’, तुलसीराम की ‘मणिकर्णिका’ और शरणकुमार लिंबाले की ‘अक्करमाशी’ जैसी रचनाओं ने हिन्दी दलित साहित्य को नई दिशा और पहचान दी। इस विषय पर शोध की आवश्यकता इसलिए भी महत्वपूर्ण है क्योंकि यह साहित्य भारतीय समाज के उस पक्ष को उद्घाटित करता है जिसे मुख्यधारा साहित्य या इतिहास में अक्सर अनदेखा किया गया है। आज जब समाज समता, न्याय और सामाजिक समरसता की ओर बढ़ने का प्रयास कर रहा है, तब दलित साहित्य उन संघर्षों को याद दिलाता है जो अभी भी अधूरे हैं। यह साहित्य केवल दलितों की पीड़ा का दस्तावेज नहीं, बल्कि उनकी चेतना, स्वाभिमान और मानवाधिकार की मांग का प्रमाण भी है। |
Area | साहित्य |
Published In | Volume 1, Issue 4, October 2024 |
Published On | 24-10-2024 |
Cite This | सिंह, दीपिका (2024). हिन्दी दलित साहित्य: एक सामाजिक और सांस्कृतिक अध्ययन. Shodh Sangam Patrika, 1(4), pp. 6-11. |