Article Title |
भारतीय ज्ञान परंपरा के उत्स : वेदांग |
Author(s) | मनोज कुमार झा. |
Country | |
Abstract |
भारतीय ज्ञान परंपरा की सरणियाँ बहुविध पथों का अवलंबन करती हुई अनादिकाल से प्रवाहित होती आ रही हैं। वेद इस परंपरा के गोमुख हैं। वेदों में भारतीय ज्ञान संपुट रूप में विद्यमान है। यह ज्ञान हजारों वर्षों की कालावधि में संकलित और व्यवस्थित किया गया। श्रीअरविंद ने वेद रहस्य (द सीक्रेट्स ऑफ द वेदाज़) में वैदिक संहिता को भारतवर्ष के धर्म, सभ्यता और आध्यात्मज्ञान का सनातन स्रोत कहा है। वे वेदों को रहस्यमय साहित्य मानते हैं तथा कहते हैं कि वेद, उनकी भाषा, कथन शैली, विचारधारा आदि किसी अन्य युग की सृष्टि हैं, अन्य प्रकार के मनुष्यों की बुद्धि की उपज हैं। एक ओर तो वे अति सरल हैं, मानो निर्मल वेगवती नदी के प्रवाह हों, दूसरी ओर यह विचार-प्रणाली इतनी जटिल लगती है, इसका भाषिक अर्थ इतना गूढ़ है कि मूल विचार तथा पंक्ति के सामान्य अर्थ को समझने में प्राचीन काल से तर्क-वितर्क होता आ रहा है। |
Area | हिन्दी साहित्य |
Published In | Volume 2, Issue 2, July 2025 |
Published On | 30-07-2025 |
Cite This | झा, मनोज कुमार (2025). भारतीय ज्ञान परंपरा के उत्स : वेदांग. Shodh Sangam Patrika, 2(2), pp. 147-158. |