Article Title |
नागार्जुन के काव्य में राजनीतिक व्यंग्य |
Author(s) | चंचल साह. |
Country | |
Abstract |
आधुनिक साहित्य में शुरुआत से ही अपनी बात कहने के लिए व्यंग्य का सहारा लिया जाता है । जब भी किसी व्यक्ति, किसी विषय, धर्म, राजनीति आदि पर कटाक्ष करना हो, व्यंग्य ही एकमात्र विकल्प होता है । आधुनिक साहित्य के निर्माता भारतेंदु ने अपने तात्कालिक समय की राजनीति, आर्थिक, धार्मिक, सामाजिक विषमताओं पर कटाक्ष करने के लिए व्यंग्य को ही सहारा बनाया । इसी तरह भारतेंदु युग से लेकर छायावादी युग तक के लगभग सभी कवियों ने अपनी रचनाओं में व्यंग्यात्मकता को प्रधानता दी है । हिंदी साहित्य का प्रगतिवादी युग विषमताओं का ही युग रहा है। नागार्जुन इस युग के प्रमुख कवि रहे हैं । उनके रचनाकाल 1935 से लेकर उनके मृत्युपर्यंत तक राजनीति में अनगिनत बदलाव हुए । देश को अंग्रेजों से आजादी तो मिल गई पर आम जनता अभी भी अपने ही देश में, अपने ही देश के कुछ नामचीन लोगों के हाथों की कठपुतली थी । देश की स्वतंत्रता पश्चात् भी उनकी जरुरतें, देश के शासकों से उनकी उम्मीदें जब की तस थी । सरकारें बदल रही थी, पर अब भी आमजन की स्थिति में कोई बदलाव नहीं हो रहा था । केंद्रीय सत्ता अपने मनमानी करने से बाज़ नहीं आ रहे थे । नागार्जुन राजनीति के इस बदलते परिवेश को महसूस कर रहे थे । नागार्जुन ने राजनीति के इस बदलते परिवेश और उससे उत्पन्न होने वाली समस्याओं से निपटने के लिए अपनी रचनाओं में व्यंग्य को एक हथियार के रूप में इस्तेमाल किया । उन्होंने अपने तीखे व्यंग्यात्मक बाणों से किसी को नहीं बख्शा । सामान्य व्यक्ति के साथ नेतागण, भारत के निर्माणकर्ता, सत्ताधारी वर्ग सभी उनके दृष्टि में थे । उन्होंने अपनी कविताओं में इन सारे वर्गों पर व्यंग्य के माध्यम से तंज कसा । वे एक सशक्त व्यंग्यकार थे । |
Area | हिन्दी साहित्य |
Published In | Volume 2, Issue 2, June 2025 |
Published On | 30-06-2025 |
Cite This | साह, चंचल (2025). नागार्जुन के काव्य में राजनीतिक व्यंग्य. Shodh Sangam Patrika, 2(2), pp. 174-183. |