| Article Title | महादेवी वर्मा की कविता में स्त्री चेतना और सामाजिक परिप्रेक्ष्य | 
| Author(s) | डा. प्रमोद कुमार सहनी. | 
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| Abstract | महादेवी वर्मा आधुनिक हिंदी साहित्य के छायावादी युग की एक प्रमुख स्तंभ थी, जिनकी काव्य रचनाएँ न केवल उनकी कालजयी साहित्यिक प्रतिभा को बताती है, बल्कि समाज और स्त्री के प्रति उनकी गहरी संवेदनशीलता और समझ का परिचय भी देती है। इनके साहित्य उनके व्यक्तिगत अनुभवो, संवेदनाओ और गहन अध्यात्मिक दृष्टिकोण का प्रतिफल है। उन्हांेने न केवल छायावादी साहित्य को नई ऊँचाईयों तक पहुँचाया, बल्कि अपने साहित्य के माध्यम से स्त्री के भीतर सुलगते हुए संघर्ष, वेदना ओर उसकी स्वतंत्रता की अकांक्षा को भी सामने रखा। महादेवी जी के समय का भारतीय समाज पितृसŸाात्मक विचारधारा से संचालित था, जहाँ स्त्री को मुख्यतः घर और परिवार तक सीमित माना और रखा जाता था। इस सामाजिक व्यवस्था में स्त्री के अधिकारों ओर स्वतंत्रता के बारे में सोचना भी एक चुनौतीपूर्ण कार्य था। ऐसे समय में महादेवी ने अपने कविताओं और गद्य रचनाओ के द्वारा स्त्री के मानसिक और सामाजिक संघर्षो को अभिव्यक्ति दी और उसके अधिकारों के लिए आवाज बुलंद की। | 
| Area | हिन्दी साहित्य | 
| Issue | Volume 2, Issue 3 (July - September 2025) | 
| Published | 24-07-2025 | 
| How to Cite | Shodh Sangam Patrika, 2(3), 1-6. | 
 
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