| Article Title | कुमाउनी जनजातीय होली का सांस्कृतिक आधार पर कलात्मक विवेचन | 
| Author(s) | भाग्य श्री ओली. | 
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| Abstract | कुमाऊं में होली का त्यौहार एक लोक उत्सव के रूप में मनाया जाता है। इसीलिए इसे होलिकोत्सव भी कहा जाता है। कुमाऊनी समाज में होली का त्यौहार लगभग एक या डेढ़ महीने पहले से शुरू हो जाता है। यहां का हर वर्ग इस उत्सव को बड़े ही उत्साह के साथ इस त्योंहार को मनाता है। वैसे तो कुमाऊं के पहाड़ो में होली लोक उत्सव के रूप में प्रसिद्ध है। लेकिन कुमाऊं के जनजातीय समुदाय में होली का त्यौहार कुछ भिन्न तरीके से मनाया जाता है। कुमाऊनी जनजातियों में कुछ स्थानों की होली विशेष प्रसिद्ध है। यहां जनजातियों में होली के अवसर पर गीत-संगीत के अलावा तंत्र-मंत्र, अनुष्ठानिक कला का समावेश देखने को मिलता है। यहाँ धार्मिक अनुष्ठान से लेकर ढोलक की थाप के साथ होली मनाई जाती है। वहीं होलिकोत्सव के अवसर पर कला एवं संस्कृति का अनूठा संयोजन देखने को मिलता है। ब्रज, बरसाना और मथुरा की होली ने जहां कृष्ण एवं राधा के अलौकिक प्रेम की गाथाओं को हजारों वर्षों तक जीवित कर दिया। वहीं ब्रज की गलियों से गूंजते हुए इस राधा कृष्ण के प्रेम ने पहाड़ों के प्राकृतिक सौंदर्य को एक नया स्वरूप दिया। वैसे तो उत्तराखंड के हर कोने में होली का उत्सव मनाया जाता है, परंतु कुमाऊं की जनजातीय होली ने यहां के स्थानीय लोक संस्कृति को धीरे-धीरे जीवन के अभिन्न अंग के रूप में समाहित करने में विशिष्ट योगदान है। | 
| Area | चित्रकला | 
| Issue | Volume 2, Issue 2 (April - June 2025) | 
| Published | 12-05-2025 | 
| How to Cite | Shodh Sangam Patrika, 2(2), 12-17. | 
 
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