एम. टी. वासुदेवन नायर का रचनात्मक द्वैत: साहित्य और सिनेमा की संगति

Shodh Sangam Patrika

Shodh Sangam

Patrika

A National, Peer-reviewed, Quarterly Journal

  ISSN: 3049-0707 (Online)
ISSN: 3049-172X (Print)

Call For Paper - Volume - 2 Issue - 3 (July - September 2025)
Article Title

एम. टी. वासुदेवन नायर का रचनात्मक द्वैत: साहित्य और सिनेमा की संगति

Author(s) रेमीसा सी. यु..
Country
Abstract

प्रत्येक समाज और प्रत्येक युग की अपनी एक आत्मा होती है—एक अंतर्धारा, जो उसके सामाजिक ताने-बाने, निवासियों की आकांक्षाओं और सामूहिक अवचेतन की गहराइयों से होकर बहती है। इस आत्मा को शब्द देने, उसे आकार प्रदान करने और उसे भविष्य की पीढ़ियों के लिए संरक्षित करने का गुरुतर दायित्व उस युग के महान लेखकों और कलाकारों पर होता है। वे न केवल अपने समय के संवेदनशील दृष्टा होते हैं, बल्कि मनोवैज्ञानिक और समाजशास्त्री की भूमिका भी निभाते हैं।जब हम बीसवीं सदी के उत्तरार्ध में भारतीय साहित्य के परिदृश्य पर दृष्टि डालते हैं, तो केरल की उर्वर भूमि से एक ऐसा नाम उभरता है, जो इन सभी भूमिकाओं का सफलतापूर्वक निर्वहन करता है—माडथ थेक्केपाट्टु वासुदेवन नायर, जिन्हें साहित्यिक जगत 'एम. टी.' के नाम से जानता है। एम. टी. एक ऐसे साहित्यिक पुरोधा हैं, जिनकी लेखनी ने न केवल मलयालम भाषा को नई ऊँचाइयाँ प्रदान कीं, बल्कि केरल के संक्रमणकालीन समाज के अंतर्मन का ऐसा जीवंत चित्रण प्रस्तुत किया, जो अपनी क्षेत्रीय सीमाओं को लांघकर एक सार्वभौमिक मानवीय अनुभव में रूपांतरित हो गया। उनका कृतित्व एक विशाल वटवृक्ष की भाँति है, जिसकी जड़ें केरल की मिट्टी और मिथकों में गहराई तक धँसी हैं, और जिसकी शाखाएँ मानवीय अस्तित्व के जटिल प्रश्नों को छूने के लिए आकाश की ओर फैली हुई हैं।

Area हिन्दी साहित्य
Published In Volume 2, Issue 3, August 2025
Published On 05-08-2025
Cite This यु., रेमीसा सी. (2025). एम. टी. वासुदेवन नायर का रचनात्मक द्वैत: साहित्य और सिनेमा की संगति. Shodh Sangam Patrika, 2(3), pp. 36-40.

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