समकालीन कला अभ्यास में अपशिष्ट पदार्थों का पुनर्चक्रण: एक स्थायी सौंदर्यशास्त्र

Shodh Sangam Patrika

Shodh Sangam

Patrika

A National, Peer-reviewed, Quarterly Journal

  ISSN: 3049-0707 (Online)
ISSN: 3049-172X (Print)

Call For Paper - Volume - 2 Issue - 3 (July - September 2025)
Article Title

समकालीन कला अभ्यास में अपशिष्ट पदार्थों का पुनर्चक्रण: एक स्थायी सौंदर्यशास्त्र

Author(s) डॉ. भूपत राम.
Country
Abstract

समकालीन भारतीय कला में अपशिष्ट पदार्थों के पुनर्चक्रण की प्रवृत्ति, केवल एक पर्यावरणीय समाधान नहीं, बल्कि एक सशक्त सांस्कृतिक और सौंदर्यशास्त्रीय वक्तव्य बन चुकी है। यह प्रवृत्ति उस कलात्मक दृष्टिकोण को उजागर करती है, जिसमें कलाकार समाज द्वारा त्याज्य घोषित वस्तुओं — जैसे प्लास्टिक, धातु, पुरानी साड़ियाँ, बर्तन, खिलौने आदि — को रचनात्मक माध्यम बनाकर कला को वैचारिक गहराई प्रदान करते हैं। यह प्रक्रिया न केवल पर्यावरणीय चेतना को स्वर देती है, बल्कि वर्ग, श्रम, स्मृति, और लिंग आधारित अनुभवों को भी कलात्मक विमर्श में लाती है। सुबोध गुप्ता, भारती खेर, मंजरी शर्मा, हरेन्द्रनाथ, चिमन डांगी, निलेश कुमार सिद्धपुरा जैसे कलाकार और ग्रामीण महिला समूह इस प्रवृत्ति के सक्रिय वाहक हैं। उनकी कृतियों में पुनर्चक्रण सौंदर्यशास्त्र के साथ सामाजिक चेतना का समन्वय भी है। यह शोध इन कलाकारों की कृतियों का विश्लेषण प्रस्तुत करता है, तथा यह रेखांकित करता है कि पुनर्चक्रण अब केवल तकनीक नहीं, बल्कि एक उत्तरदायी कलात्मक दृष्टिकोण है।

Area सामाजिक अध्ययन
Published In Volume 2, Issue 3, August 2025
Published On 10-08-2025
Cite This राम, डॉ. भूपत (2025). समकालीन कला अभ्यास में अपशिष्ट पदार्थों का पुनर्चक्रण: एक स्थायी सौंदर्यशास्त्र. Shodh Sangam Patrika, 2(3), pp. 41-45.

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